हरिप्रकाश त्यागी

हरिप्रकाश त्यागी चित्रकार,  कवि , लेखक

डा  उषा त्यागी

हरिप्रकाश त्यागी का जन्म 15 नवम्बर सन् 1949 को ग्राम हरेवली (बिजनौर) में हुआ। आपके पिता जी का नाम श्री जबर सिंह एवं माता का नाम श्रीमती ज्वालादेवी था। गाँव में जमींदारी थी, लेकिन पिता देवबन्द (सहारनपुर) में हैड कान्स्टेबिल थे। उन्हें 'दीवान जी' कहकर संबोधित किया जाता था। कुछ पारिवारिक परम्परा और कुछ पुलिस विभाग में नौकरी के कारण वह रोबदार व्यक्ति थे।  कहा जाता है कि  दीवान जी को देवबन्द में किसी ने शराब में पारा मिलाकर पिला दिया ।इलाज के सिलसिले में वह अपने गाँव हरेवली आ गये आज के प्रसिद्ध व्यंग्यकार रवीन्द्रनाथ त्यागी के पिता वैद्य मुरारीदत्त शर्मा 'कविराज' ने उनका इलाज किया, लेकिन उन्हें कोई फायदा होता दिखाई नहीं दिया। इस घटना के आघात से हरिप्रकाश त्यागी की माता जी अपने पति से पहले ही चल बसी और इसके एक माह पश्चात दीवान जी भी स्वर्गवासी हो गये। परिवार के साथ-साथ हरिप्रकाश का पालन पोषण भी बड़े भाई सोमप्रकाश जी ने किया। बड़े भाई गरम मिजाज आदमी थे। अपने तेज तर्रार वाक्यों में गाली −गलौच को समुचित स्थान देते थे। इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात, हरिप्रकाश त्यागी दिल्ली अपने जीजा श्री हरिपाल त्यागी के पास रहकर कला की बारिकियां समझने लगा। उनके अनुसार, उसे लेकर मेरे मन में कुछ डर भी बना रहता था, क्योंकि बातचीत में वह रफ था, कुछ उजड्डपन उसमें आखिर तक रहा।

 

मूलतः हरिप्रकाश त्यागी क्या था, शायद ही कोई ठीक से बता पाये। वह चित्रकार था कि कवि था। कथाकार कि उपन्यासकार ? बुक कवर डिजाइनर कि कला समीक्षक? टी.वी. सैट डिजाइनर की कला समीक्षक? वह हसोड़ था कि भावुक कि गप्पी कि क्रूर कि अराजक या कि आत्मघाती ? वह गंवई था कि नागर? सबसे घुला मिला था कि निपट अकेला, सांसारिक था कि ब्रह्माण्ड में विचरण करने वाला कोई एकाकी नक्षत्र?

'नाखून उखड़ने की रात' (कविता संग्रह) 'दूसरा आदमी लाओ' (उपन्यास) 'जीवन दोस्तों की कहानियां' के सम्पादक के रूप में, त्यागी साहित्य के क्षेत्र में अपना स्थान ही नहीं रखता, बल्कि 'विकासशील देशों की समकालीन स्थितियों' और 'विश्व राजनीति' जैसी पुस्तकों के रूप में भी जाना जाता है।अपनी पेंटिंग और कविता के विषय में हरिप्रकाश त्यागी ने कहा था-'.....हम कविता को पेंटिंग में नहीं उतार सकते, न ही पेंटिंग को कविता बना सकते हैं। शब्दों का अपना महत्व और अर्थ है और रंगों का अपना। शब्दों और रंगों के माध्यम से अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाकर हरिप्रकाश त्यागी 22 अप्रैल 1998 को इस संसार से विदा ले, अनन्त की ओर प्रयाण कर गये। समूचा कला/साहित्य जगत मर्माहत हो उठा। '...... वह दरअसल धीरे-धीरे अकेला पड़ता जाने वाला हरफन मौला किस्म का कलाकार था। एक तरफ वह अपने आस-पास के लोगों से दूर होता जा रहा था, तो दूसरी तरफ नये-नये सम्बंधों की जोड़-तोड़ में भागदौड़ करता रहता था। वह एक चित्रकार, कवि-कथाकार, निर्देशक और कला समीक्षक के रूप में जाता है। उसने हिन्दी को अनेक महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के माध्यम से देश के जाने माने कलाकरों का परिचय हिन्दी पाठकों से कराया, और इस तरह साहित्य और कला के बीच एक पुख्ता पुल की भूमिका निभाई.....।  हरिप्रकाश, प्रतिबद्ध और रचनात्मक दोनों थे। कला/कविता/दोस्ती हर स्तर पर एक आन्दोलन की तरह थे वह। 494 विलक्षण प्रतिभा थी उस आदमी में।  साहित्य/संस्कृति और कला रूपी तिमंजिले आदमी का नाम था, हरिप्रकाश। 496 वह, हमारे प्यारे चाचा श्री थे..... बचपन से उनके सानिध्य में रहने का सौभाग्य सहज मिला..... कला और साहित्य में उनकी गहरी पैठ थी....... उन्हीं संस्कारों के कारण आज साहित्यिक अभिरुचि परिष्कृत हुई है..... एक खालीपन सा आ गया लगता है... ।

 

 डा उषा त्यागी की पुस्तक बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य संवर्द्धन में बिजनौर जनपद का योगदान


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