अरुणा आसफ अली
अरुणा गांगुली की पैदाइश कालका-पंजाब के एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में 16 जुलाई सन् 1909 को हुई थी।
आपकी शुरुआती तालीम लाहौर में हुई और नैनीताल से आला तालीम पूरी करने के बाद वह गोखले मेमोरियल स्कूल (कलकत्ता) में टीचर की नौकरी करने लगीं। इसी दौरान जंगे-आज़ादी की मुहिम में उनकी मुलाकात कांग्रेस लीडर आसफ अली से हुई और वह उनसे इतना असरअंदाज़ हुई कि उन्होंने शादी का प्रस्ताव रख दिया।
उस वक़्त उम्र और मज़हब दोनों के लिहाज़ से यह बहुत जोखिम भरा काम था, लेकिन सभी मोखालिफ हालात के बाद भी दोनों ने सन् 1928 में शादी कर ली।
शादी के बाद आसफ अली के साथ कांग्रेस में शामिल होकर उनके आंदोलनों में हिस्सा लेने लगीं। नमक सत्याग्रह में वह गिरफ्तार भी हुई। बाद में कुछ महीनों की सज़ा पूरी करने के बाद भी उन्हें नहीं छोड़ा गया, जबकि अन्य औरत सत्याग्रहियों को छोड़ दिया गया। इर्विन समझौते के तहत जब सभी सियासी कैदी छोड़े गये, लेकिन उन्हें तब भी रिहा नहीं किया गया। अरुणा की रिहाई के लिए एक आंदोलन भी हुआ। इस जन-आंदोलन को देखते हुए अंग्रेज़ी हुकूमत ने गांधीजी की मध्यस्थता में एक
मीटिंग की। उस मीटिंग के बाद ही उनकी रिहाई हुई। कुछ दिनों बाद ही सन् 1932 में इन्हें आंदोलन करने के जुर्म में फिर गिरफ्तार कर लिया गया और तिहाड़ जेल (दिल्ली) में रखा गया। मगर वहां जेल के घटिया खाने और बदसलूकी के खिलाफ अरुणा ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। इसकी सज़ा के तौर पर उन्हें अंबाला जेल में भेजकर तनहाई-बैरक में रखा गया। यहां से रिहाई के बाद भी अरुणा आंदोलनों को दिशा देती रहीं। कुछ दिनों तक तन्हाई में जाकर आंदोलनकारियों की हिम्मत बढ़ाने के लिए वह लेख भी लिखती रहीं। फिर 9 अगस्त सन् 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान (जिस पर पुलिस ने पाबंदी लगाकर चारों ओर से घेर रखा था) में बहादुरी का मुज़ाहिरा करते हुए उन्होंने तिरंगा फहरा दिया। अंग्रेज़ अफसरों ने उनके खिलाफ वारंट निकाल दिया, लेकिन वह गिरफ्तार न होकर करोलबाग (दिल्ली) में डॉक्टर जोशी के अस्पताल में भर्ती हो गयीं। फिर जब गांधीजी ने ख़त भेजकर उन्हें सरेन्डर करने के लिए कहा तब वह बाहर आयीं और गिरफ्तार हुई।
आपने डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ कांग्रेस की मैगज़ीन इंकलाब की एडीटिंग भी किया। सन् 1944 में उन्होंने इसी मैगज़ीन में नौजवानों को जोश दिलाने के लिए लिखा कि भूल जायें हिंसा और अहिंसा की बहसों को और क्रांति में शामिल हों। जब डॉक्टर लोहिया व जयप्रकाश नारायण ने सन् 1948 में सोशलिस्ट पार्टी बनायी तो अरुणा उसमें शामिल हो गयीं। बाद में वह कम्युनिस्ट पार्टी में चली गयीं। सन् 1958 में अरुणा पहली महिला मेयर दिल्ली के लिए चुनी गयी। उसके बाद वह लिंक पब्लिशिंग हाऊस प्रकाशन के दैनिक अखबार पैट्रियाट और लिंक पत्रिका के लिए काम करने लगीं। सन् 1964 में वह इंदिरा गांधी की वजह से कांग्रेस पार्टी में दोबारा शामिल हो गयीं और सन् 1975 के दौराने इमरजेंसी भी कांग्रेस में ही बनी रहीं।
अरुणा आसिफ अली को सन् 1964 में लेनिन एवार्ड 1991 में जवाहरलाल नेहरू इन्टरनेशनल एवार्ड और सन् 1992 में पद्म-विभूषण और उनके मरने के बाद सन् 1997 में भारत-रत्न से नवाज़ा गया। सन् 1998 में उनकी याद में डाक-टिकट भी जारी किया गया।
लहू बोलता है
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