अफसर जमशेद


अफसर जमशेद बिजनौर की बाकमाल शख्सियत थे।उस एक आदमी में बेशुमार सलाहियतें थी।वे उम्दा शायर थे,गज़ब के लेखक थे। बीसवीं सदी और रूबी जैसे मैयारी रिसालों समेत सौ से ज़्यादा अखबारों-रिसालों में उन्होंने अपनी   सलाहियातों से कामयाबी के परचम लहराए। उनके क़लम से निकले एक-एक लफ्ज़ को लोगों ने दिल से सराहा।
बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान के रहने वाले अफसर साहब का नाम अब्दुस्समी था।बचपन मे ही बाप का साया सर से उठ जाने के बाद दादा हाजी अब्दुल मजीद ने उनकी परवरिश की। मजीद साहब मिर्दगान की जामा मस्जिद के इमाम थे।उन दिनों मिर्दगान से मदीना अख़बार निकलता था,जिससे इमाम साहब बहुत मुताअस्सिर थे।उनकी ख्वाहिश हुआ करती कि उनका पोता भी बड़ा होकर सहाफ़ी(पत्रकार)बने।हुआ भी ऐसा ही।पढ़ाई में तेज़ अब्दुस्समी कम उम्र में दिल्ली चले गये।वहां उन्होंने अफसर जमशेद बनने का संघर्ष शुरू किया। बेशुमार सलाहियतो के मालिक अफसर जमशेद ने जिधर भी क़दम बढ़ाये,कामयाबी ने आगे बढ़ कर  उनके क़दम चूमे।उन्होंने सौ से ज्यादा अखबारों-रिसालो मे काम किया।शायरी में भी अपनी अलग पहचान बनाई।दिल्ली से मुंबई गये तो बालीवुड़ को चौंका दिया।उन्होने फिल्मों में स्क्रिप्ट और डायलॉग लिखे। फिल्म शौले के डायलॉग राइटर को उन्होंने एक सीन मे बिजनौर की इलाक़ई भाषा का इस्तेमाल करने की सलाह देते हुए उस पूरे सीन के डायलॉग लिखे।बालीवुड में अफसर जमशेद की दिलीप कुमार,मीना कुमारी,राजेंद्र कुमार,अमजद खान, साधना, संजीव कुमार,शाहिद बिजनौरी और रेखा जैसे एक्टरो से गहरी दोस्ती रही।रेखा से तो उनकी नज़दीकियों को लेकर काना फूसी भी खूब हुई। अफसर जमशेद ने एक फिल्म महंगा पानी,सस्ता खून का निर्माण भी शुरू किया लेकिन उनकी यह फिल्म बन नहीं सकी। 
अचानक हुए हार्ट अटैक के बाद अफसर जमशेद ने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया। वे बिजनौर लौटे तो उनकी ज़िंदगी ही बदल गई।हालांकि बिजनौर में उनकी मित्र मंडली में क़लम के यौद्धा कहे जाने वाले स्व.श्री बाबू सिंह चौहान जी,श्री निश्तर खानकाही जी, श्री राजेंद्र कश्यप आदि शामिल थे।
बिजनौर लौटने पर अफसर जमशेद साहब का रुझान सूफी इज़्म की तरफ हो गया। हालांकि वे अपने सूफीवाद को पोशीदा रखते थे,लेकिन बावजूद इसके बिजनौर व आस पास के इलाक़ो में उनसे बहुत सारे लोग जुड़ गये या यूँ कहिये कि उनके मुरीद हो गये।इन मुरीदों मे बहुत सारे शायर भी थे,जो उनसे शायरी से मुताअल्लिक मशवरे भी लेते थे।
अफसर जमशेद साहब की मुरीद बिजनौर निवासी सीनियर पत्रकार नाहीद फातिमा बताती है कि अफसर साहब जितने बड़े शायर और लेखक थे,उतने ही बड़े वे सूफी भी थे। 
12 जुलाई 2006 को अफसर साहब इस दार-ए-फानी से कूच कर गये। नाहीद फातिमा के मुताबिक - उन्होंने अपनी शायरी का मुस्व्विदा उन्हें सौंपा था,जिसे उन्होंने उनकी वफ़ात के बाद किताब की शक्ल दी। उनके इस मजमू-ए-कलाम का नाम शाह-अदब है।
 मेरी और तमाम क़लमकारों की जानिब से अफसर जमशेद साहब को दिली खिराज -ए-अक़ीदत।

श्री मरगूब रहमानी साहब की वॉल से
 

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